मशगूल लोग एक लंबे अरसे से इस ज्वलंत समस्या से मुंह मोड़ रहे हैं। चिलचिलाती गर्मी से झुलस रहा भारत
भीषण जल सकंट से भी जूझ रहा है। पानी के लिये मचे घमासान के बीच कहीं एक बाल्टी पानी के लिये खून बहाया जा रहा है तो कहीं इसकी कालाबाजारी जोरों पर है।
पौराणिक ग्रंथ रामायण, गीता, कुरान और गुरूग्रंथ साहिब समेत अधिसंख्य धर्मग्रंथों में जल एवं पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों को सिर्फ चेताया गया है बल्कि इसकी रक्षा का वचन भी लिया गया है। हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार राजा सगर के पुत्र भगीरथ ने अपने 60 हजार पूर्वजों की मुक्ति के लिये गंगा को मृत्यु़लोक में भेजने की आराधना भगवान शिव से एक पैर पर खड़े होकर की थी। गंगा के अवतरण के बाद धरती में जल को संरक्षित रखने की मुहिम भी शुरू हो गयी। इसका उल्लेख लगभग सभी धर्मों के ग्रंथों में मिलता है। रामचरितमानस की एक चौपाई जलन्हि मूल जिन्ह सरितन्ह नाही, बरषि गये पुनि रहहि सुखाहीं।। अर्थात जिन नदियों का स्त्रोत पर्वत नहीं है उनका अस्तित्व केवल वर्षा के दौरान ही रहता है। इसका भाव यह है कि हमें अपने प्राकृतिक जल स्त्रोतों की रक्षा के प्रति सचेत रहना चाहिये। गुरू ग्रंथ साहिब में पानी एवं पर्यावरण के बारे में अनुयायियों को चेतावनी सूचक शब्दों में लिखा है, धरती मां है और इसकी नदियां खून की नाड़ियां है जबकि जंगल फेफड़े हैं। हिन्दू ग्रंथ पराशर स्मृति मे लिखा है कि जो आदमी पानी दूषित करता है वह अगले जन्म में कुत्ता होगा। मनुस्मृति 282 के अनुसार पानी में गंदगी डालने वालों को सजा दो, पानी से जीवन प्रारंभ हुआ और इसी से समाप्त होगा। इस बारे में वृहस्पति स्मृति में स्पष्ट उल्लेख है कि जो एक दिन भी अपनी धरती पर पानी रोकता है उसकी अगली पिछली पीढियों को पुण्य लाभ मिलता है। ग्रंथ के अनुसार जो पानी को ऐसे बचाये कि जब तक वर्षा हो और गर्मी में भी पानी मिल जाये उसको कभी कष्ट नही होता। जल संरक्षण के लिये शंख स्मृति-तैतरीय उपनिषद, छांदग्योपनिषद, अर्थवेद और रिगवेद में भी लोगों को आगाह किया गया है। कुरान पाक की सूरासात-आयत 55 में लिखा है कि पानी खुदा की रहमत है और इसका हटना विनाश के बराबर है। इसके अलावा सूरा 55 आयत 19.20 में भी प्रकृति की इस अनमोल धरोहर को बचाने के लिये चेतावनी दी गयी है कि पानी अथाह नही है इसकी मात्रा निश्चित है। पानी गंदा न करना और इसे बरबाद भी नही करना।
15 वीं शताब्दी के मध्य में मुगल बादशाह अकबर के नवरत्नों में शामिल हिन्दी भाषी कवि रहीम खान ए.खाना ने अपने दोहों में लोंगो को पानी के खतरे के प्रति आगाह करते हुये लिखा था। रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून, पानी गये न ऊबरे-मोती मानुष चून।
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