‘गुरु’ शब्द, केवल दो अक्षरों से बना है। उसमें ‘गु’ का अर्थ ‘अंधकार’ यानि की अज्ञान व ‘रु’ का अर्थ ‘प्रकाश’ यानि की ज्ञान से है। अर्थात अज्ञान रूपी अंधकार को नष्ट करने वाला प्रकाश ही गुरु है, इसमें कोई संशय नहीं।
यहाँ गुरु शब्द का तात्पर्य कक्षा में पढ़ाने वाले शिक्षक या आचार्य से नहीं है। क्योंकि वे तो शैक्षणिक व
व्यावहारिक ज्ञान देते हैं, लेकिन गुरुदेव तो उस अमृतरूपी ज्ञान की बौछार करते हैं जिसे पाने के बाद शिष्य का उद्धार हो जाता है और कुछ भी पाने की तमन्ना नहीं रहती।
जितनी प्रीति हम अपने कुटुम्ब से करते हैं, अगर उतनी ही प्रीति हम अपने गुरुदेव जी से कर लें तो इसी जीवन में हम आत्म-साक्षात्कार कर सकते हैं। हमें इस जीवन में मानुष देह मिली है तो हमें उसे उलटे सीधे कामों में ना गंवाकर ईश्वर प्राप्ति की ओर लगाना चाहिए। ईश्वर की प्राप्ति का माध्यम एक मात्र सशक्त गुरु ही होता है। अगर सदगुरु की प्राप्ति हो जाए तो जीवन धन्य है और ऐसे गुरुदेव के चरणों में पहुंचते ही जीवन की सभी व्याधियाँ क्षीण होने लगती हैं। गुरु के द्वारा दिया गया, हृदय को उद्वेलित करने वाला प्रकाश चारों तरफ फैलकर आपके जीवन को प्रकाशित कर देगा। सही अर्थों में गुरुदेव जी ही अपने शिष्यों का मंगल करते हैं और उन्हें मोक्ष प्राप्ति की सही राह दिखाने में मार्गदर्शन देते हैं।
एक सच्चा गुरु ही वह होता है जो साधक को आत्मज्ञान के सागर में हिलोरें दिलवाए, ध्यान की आन्तरिक गहराईयों में व ज्ञान की अमृतधारा में नहलाकर परम पद का अमृत प्रसाद दिलवाए। सदगुरु तो एक ही क्षण में करोड़ों-करोड़ों शिष्यों को ध्यान व ज्ञान की अमृतधारा का स्वाद चखा सकते हैं, जिसे पाने के बाद कुछ पाना शेष नहीं रह जाता।
यहाँ गुरु शब्द का तात्पर्य कक्षा में पढ़ाने वाले शिक्षक या आचार्य से नहीं है। क्योंकि वे तो शैक्षणिक व
व्यावहारिक ज्ञान देते हैं, लेकिन गुरुदेव तो उस अमृतरूपी ज्ञान की बौछार करते हैं जिसे पाने के बाद शिष्य का उद्धार हो जाता है और कुछ भी पाने की तमन्ना नहीं रहती।
जितनी प्रीति हम अपने कुटुम्ब से करते हैं, अगर उतनी ही प्रीति हम अपने गुरुदेव जी से कर लें तो इसी जीवन में हम आत्म-साक्षात्कार कर सकते हैं। हमें इस जीवन में मानुष देह मिली है तो हमें उसे उलटे सीधे कामों में ना गंवाकर ईश्वर प्राप्ति की ओर लगाना चाहिए। ईश्वर की प्राप्ति का माध्यम एक मात्र सशक्त गुरु ही होता है। अगर सदगुरु की प्राप्ति हो जाए तो जीवन धन्य है और ऐसे गुरुदेव के चरणों में पहुंचते ही जीवन की सभी व्याधियाँ क्षीण होने लगती हैं। गुरु के द्वारा दिया गया, हृदय को उद्वेलित करने वाला प्रकाश चारों तरफ फैलकर आपके जीवन को प्रकाशित कर देगा। सही अर्थों में गुरुदेव जी ही अपने शिष्यों का मंगल करते हैं और उन्हें मोक्ष प्राप्ति की सही राह दिखाने में मार्गदर्शन देते हैं।
एक सच्चा गुरु ही वह होता है जो साधक को आत्मज्ञान के सागर में हिलोरें दिलवाए, ध्यान की आन्तरिक गहराईयों में व ज्ञान की अमृतधारा में नहलाकर परम पद का अमृत प्रसाद दिलवाए। सदगुरु तो एक ही क्षण में करोड़ों-करोड़ों शिष्यों को ध्यान व ज्ञान की अमृतधारा का स्वाद चखा सकते हैं, जिसे पाने के बाद कुछ पाना शेष नहीं रह जाता।
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