वर्तमान समय में वातावरण में व्याप्त प्रदूषण, सामाजिक अवमूल्यन व सामान्यतया इच्छापूर्ति में व्यवधान आने की वजह से आज का युवावर्ग कुण्ठाग्रस्त होता जा रहा है, आत्मबल में कमी होने की
वजह से उसमें नशे की प्रवृत्ति हावी होती जा रही है। जिनके कन्धों पर देश, समाज व परिवार की
जिम्मेदारियों का दायित्व है वे शराब, गांजा, चरस, तम्बाकू जैसी नशीले पदार्थों के सेवन की प्रवृत्ति की ओर बढ़ते जा रहे हैं। समाज के बड़े, बुजुर्गों पर ऐसे नशे से होने वाली बुराईयों के प्रति लोगों को सजग करने की जरूरत है। ज्ञातव्य है कि शराब का सेवन जहां लीवर पर प्रभाव डालता है, स्नोफीलिया जैसी अनेक संक्रामक बीमारियां मानव शरीर को चट करती चली जाती हैं, इलाज कराने पर संचय किया गया धन व्यय होकर सम्पूर्ण पारिवारिक व्यवस्था का नाश तो होता ही है, इससे जो सामाजिक बुराईयों का जन्म हो रहा है, मान-सम्मान का हस और इसका सबसे बुरा असर बच्चों पर, उनके भविष्य पर, उनका कुण्ठाग्रस्त होने का सबसे बड़ा कारण यह भी है।
गांजा व चरस जैसे नशीले पदार्थों का सेवन कर आज हजारों लोग मानसिक विक्षिप्तता के शिकार हैं, जिन्हें आज के दौर में सामाजिक विकास के लिये कन्धे से कन्धे मिलाकर साथ देना था वे व्याकुल हैं, नशे की तलाश में इधर-उधर भटक रहे हैं। तम्बाकू तथा तम्बाकूयुक्त वस्तुओं गुटका, सिगरेट, बीड़ी आदि के सेवन से कैंसर व दमा जैसी जानलेवा बीमारियां इस अमूल्य मानव जीवन को समाप्त करती जा रही हैं। आज जरूरत है इन नशों से दूर रहने व इनसे उत्पन्न बुराईयों के प्रति समाज को पूरी तरह जागरूक करने की। गौरतलब है कि शासन- प्रशासन द्वारा आये दिन नशा उन्मूलन सम्बन्धी प्रचार- प्रसार किया जाता है, सार्वजनिक स्थानों पर तम्बाकू युक्त सामग्रियों की बिक्री व बीड़ी, सिगरेट के उपयोग करने पर सजा का प्रावधान रखा गया है लेकिन ये सब प्रचार-प्रसार व नियम-निर्देश बेअसर साबित हो रहे हैं।
वजह से उसमें नशे की प्रवृत्ति हावी होती जा रही है। जिनके कन्धों पर देश, समाज व परिवार की
जिम्मेदारियों का दायित्व है वे शराब, गांजा, चरस, तम्बाकू जैसी नशीले पदार्थों के सेवन की प्रवृत्ति की ओर बढ़ते जा रहे हैं। समाज के बड़े, बुजुर्गों पर ऐसे नशे से होने वाली बुराईयों के प्रति लोगों को सजग करने की जरूरत है। ज्ञातव्य है कि शराब का सेवन जहां लीवर पर प्रभाव डालता है, स्नोफीलिया जैसी अनेक संक्रामक बीमारियां मानव शरीर को चट करती चली जाती हैं, इलाज कराने पर संचय किया गया धन व्यय होकर सम्पूर्ण पारिवारिक व्यवस्था का नाश तो होता ही है, इससे जो सामाजिक बुराईयों का जन्म हो रहा है, मान-सम्मान का हस और इसका सबसे बुरा असर बच्चों पर, उनके भविष्य पर, उनका कुण्ठाग्रस्त होने का सबसे बड़ा कारण यह भी है।
गांजा व चरस जैसे नशीले पदार्थों का सेवन कर आज हजारों लोग मानसिक विक्षिप्तता के शिकार हैं, जिन्हें आज के दौर में सामाजिक विकास के लिये कन्धे से कन्धे मिलाकर साथ देना था वे व्याकुल हैं, नशे की तलाश में इधर-उधर भटक रहे हैं। तम्बाकू तथा तम्बाकूयुक्त वस्तुओं गुटका, सिगरेट, बीड़ी आदि के सेवन से कैंसर व दमा जैसी जानलेवा बीमारियां इस अमूल्य मानव जीवन को समाप्त करती जा रही हैं। आज जरूरत है इन नशों से दूर रहने व इनसे उत्पन्न बुराईयों के प्रति समाज को पूरी तरह जागरूक करने की। गौरतलब है कि शासन- प्रशासन द्वारा आये दिन नशा उन्मूलन सम्बन्धी प्रचार- प्रसार किया जाता है, सार्वजनिक स्थानों पर तम्बाकू युक्त सामग्रियों की बिक्री व बीड़ी, सिगरेट के उपयोग करने पर सजा का प्रावधान रखा गया है लेकिन ये सब प्रचार-प्रसार व नियम-निर्देश बेअसर साबित हो रहे हैं।
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