Wednesday, June 6, 2018

गंगा, यमुना, सरस्वती का अनूठा संगम


यह सबको विदित ही है कि गंगा और यमुना दोनों हिमालय से निकली हैं, लेकिन गंगा ठहरीं कुछ गोरी और यमुना का रंग काला, गंगा को अपनी शुभ्रता का अभिमान हुआ और वह ऊपर ही ऊपर चलीं जबकि यमुना अपने श्यामल वर्ण के कारण गंगा से कुछ दूर-दूर।

गंगा ने आगे चलकर देखा कि बिना यमुना के वह शतमुख से सागर में नहीं मिल सकेगी, इसलिये नम्र भाव से गंगा ने रूककर यमुना का स्वागत करते हुये कहा कि यमुना बहन, मेरे पास आ, मैंने तेरा रंग देखकर तुझे हेय माना, लेकिन तेरे किनारे पर तो कृष्ण भगवान ने भक्ति की वर्षा की, छोटे-बड़ों को एक किया, अपनी वंशी से सभी को एकता में पिरोये रखा, तू कितनी भाग्यशाली है, तेरी महिमा तो अपरम्पार है।  यमुना ने गंगा की प्रेम से परिपूर्ण बातों को सुनकर गद्गद होते हुये कहा कि क्यों बहन, तुम मेरी तो बड़ाई कर रही हो किन्तु तुम्हारी महिमा को तो पूरा संसार जानता है। मेरे किनारे भक्ति का अभ्युदय अवश्य हुआ लेकिन तुम्हारे किनारे से तो ज्ञान का प्रकाश फैला। भगवान पशुपतिनाथ तुम्हारे किनारे पर बैठकर साधना लीन हुए, लाखों ऋषि, मुनि तुम्हारे ही तट पर तपस्या करते हैं, राजा-महाराजा अपना राजपाट त्यागकर ब्रह्मचिंतन करते हैं। बहन, तुम पूर्ण ज्ञानवती हो। तभी गुप्त रहने वाली सरस्वती बोली कि भक्ति और ज्ञान आवश्यक है, पर बिना कर्म के वे अधूरे हैं, इसलिये भक्ति का ज्ञान से और भक्ति-ज्ञान का कर्म से मिलन अनिवार्य है। फिर क्या था? ज्ञानमयी गंगा, भक्तिमयी यमुना और कर्ममयी सरस्वती बाहें फैलाकर एक-दूसरे से आलिंगन में बंध गईं। अर्थात तीनों नदियों का संगम ज्ञान, भक्ति और कर्म की धाराओं का संगम है, भारतीय संस्कृति का यही अधिष्ठान है।
गंगा, यमुना और सरस्वती ये तीनों पवित्र व पावनमयी नदियां हमें भक्ति, ज्ञान और कर्म का संदेश देती हैं। एक को दूसरे से तथा दूसरे को तीसरे से अलग नहीं किया जा सकता। गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम से ही भक्ति, ज्ञान और कर्म की शक्तिका अभ्युदय होता है। इससे हमें यह प्रेरणा मिलती है कि कभी भी अपनी श्रेष्ठता का घमण्डकर दूसरों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिये, क्योंकि एकता में बहुत बड़ी शक्ति होती है। अलगाव से कोई भी आज तक पूर्णता प्राप्त नहीं कर सका है।

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