प्राप्त भविष्यवाणियों का विश्लेषण


प्राप्त भविष्यवाणियों का विश्लेषण
            मैंने अनेक भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियों का यथासंभव संकलन किया है। अगर इन पर गहराई से विचार किया जाय, तो पाठक एक ठोस नतीजे पर अवश्य पहुचेंगे। सर्वप्रथम भविष्यवाणी क्रमांक- 1 से 13 में भविष्यवक्ताओं ने मात्र यह बात स्पष्ट की है कि ‘‘ईश्वर का जन्म हो चुका है और वह शीघ्र ही जनता के सामने प्रकट होगा। भारत के शक्तिशाली बनने एवं उसका वर्चस्व पूरे विश्व में फैलने की बात कही है। इसी तरह, भविष्यवाणी क्रमांक-14 में निर्वाणानन्द जी के अनुसार युगपरिवर्तन की प्रक्रिया 1999 से प्रारम्भ होगी।
        भविष्यवाणी क्रमांक-15 में, बाबा जी ने 1998 में अप्रैल माह तक उस अवतार के समाज के सामने प्रकट होने तथा सारे विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने की बात स्पष्ट की है। भविष्यवाणी क्रमांक-16 में जीन डिक्सन ने भारत के एक ग्रामीण परिवार में उस अवतार के जन्म के संबंध में कहा है। यह भी स्पष्ट किया है कि वह अपने कार्यों से सारे विश्व का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करेगा। उसके द्वारा समाज हित में किये गये कार्य ही समाज विश्व को आकर्षित करेंगे। वह गाँधी जी की तरह मार्ग दर्शन करेगा, अर्थात् उसके एक इशारे पर उससे जुड़ा समाज कुछ भी करने को तैयार रहेगा।
        भविष्यवाणी क्रमांक-17 में प्रो. .के. दुबे पद्मेश के अनुसार 2000 के आसपास वह अवतार समाज के सामने प्रकट होगा। वह सर्वशक्तिमान् होगा, अर्थात् समस्त आध्यात्मिक शक्तियों का स्वामी होगा। अल्पायु में ही अपनी आध्यात्मिक शक्तियों की वजह से वह समाज में ख्याति प्राप्त करेगा। वह किसी नये धर्म का प्रचार नहीं करेगा और वह एक ही ईश्वर की पूजा का सन्देश देगा। एक ईश्वर, अर्थात् जो सर्वशक्तिसम्पन हो। वह तो केवल माता भगवती जगत् जननी जगदम्बा जी ही हैं, जिससे समस्त शक्तियों का प्रादुर्भाव हुआ है। उन्हें ब्रह्मा, विष्णु महेश भी पूजते हैं और जो समस्त ब्रह्माण्डों की जननी हैं। इससे स्पष्ट होता है कि वह चेतना या अवतार आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा जी के उपासक होंगे तथा उसी की पूजा का चिन्तन समाज को देते होंगे।
             भविष्यवाणी क्रमांक-18 में आर्थर चार्ल्सक्लार्क ने एक नई बात कही है-- जिस तरह वर्तमान समय में संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय अमेरिका में है, उसी तरह संयुक्त ग्रह राज्य संघ का मुख्यालय मंगल या गुरु ग्रह पर हो सकता है। प्रश्न उठता है कि भारत क्यों नहीं हो सकता ? जरा आप इन तथ्यों पर विचार करें कि विश्व के समस्त उच्चकोटि के भविष्यवक्ता एक ही स्वर से स्वीकार कर रहे हैं कि ‘‘ईश्वर का जन्म भारत में होगातो फिर समस्त ग्रहों का मुख्यालय भी यहीं होना चाहिए। पाठकगण ध्यान दें, पंडित गोपीनाथ कविराज सूर्य विज्ञान के विशेषज्ञ थे और उसके माध्यम से अनेकों चमत्कार दिखाते थे। उनकी पुस्तकों में ऋषियों-मुनियों की विशिष्ट तपस्थली सिद्धाश्रम या ज्ञानगंज का उल्लेख मिलता है। हमारा मानना है कि भगवान् श्रीराम का परमधाम भगवान् श्रीकृष्ण का गोलोकधाम भी यही सिद्धाश्रम होना चाहिए। भारत को अध्यात्म का केन्द्रबिन्दु कहा जाता है। यह निश्चित है कि ऐसे दिव्य स्थलों को चर्मचक्षुओं से नहीं देखा जा सकता है। परन्तु, पूर्ण कुण्डलिनी शक्ति को जाग्रत करके या पूर्ण परात्पर गुरु की कृपा प्राप्त करके ज्ञान चक्षुओं के माध्यम से वह दिव्यस्थल देखा जा सकता है। ऐसा दिव्यस्थल, जहाँ समस्त दैवी शक्तियां, ऋषि-मुनि, ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि अनेकों देवता निवास करते हैं, जहाँ से ही समस्त ब्रह्माण्ड में आध्यात्मिक प्रवाह का संचालन होता है, हमारा मानना है कि वहां तक पहुंचने का रास्ता भारत से ही मिलेगा। इसलिए समस्त ग्रहों का मुख्यालय भी भारत ही होना चाहिए।
        भविष्यवाणी क्रमांक-19 में प्रो. हरार ने अवतार के सम्बन्ध में कुछ और तथ्य स्पष्ट किये हैं कि जैसे उस अवतार का जन्म ब्राह्मण कुल में होगा और वह यज्ञ और पूजा-पाठ में विशेष प्रवीण होगा। वर्तमान में हर छोटी-बड़ी संस्था या संगठन एक कुण्डीय से 1008 कुण्डीय यज्ञ तक करा रही हैं। अधिकांश यज्ञों में किराये के पण्डितों द्वारा मंत्र पाठ होता है और यज्ञ वेदी में यजमान आहुति देते हैं। यज्ञकुण्ड में क्विण्टलों सामग्री, टनों लकड़ी, मनों देशी घी स्वाहा कर देते हैं। लेकिन, वेदों-पुराणों में वर्णित यज्ञों से इन यज्ञों की तुलना की जाये तो ऊर्जात्मक स्थिति शून्य है। आज तो एक पंडित हर तरह के यज्ञ कराने को तैयार है, चाहे वह श्रीराम, कृष्ण, हनुमान, लक्ष्मी या अन्य किसी देवता के यज्ञ हों। अधिकांश पण्डितों की अपने यजमान से यही अपेक्षा रहती है कि जितना ज्यादा से ज्यादा धन दक्षिणा के रूप में प्राप्त हो सके, ले लिया जाय। जितना बड़ा यज्ञ होगा, दक्षिणा उतनी ही मोटी होगी। यज्ञ के फल से उनका कोई सरोकार नहीं है।
          आज भी हमारे पुराणों में यज्ञों की सत्यता के अनेकों उदाहरण मिल जायेंगे, जैसे रामायण में वर्णित है कि जब राजा दशरथ के पुत्र नहीं हो रहे थे तो वे अपने गुरु महर्षि वसिष्ठ जी के पास जाकर अपनी व्यथा कहते हैं। राजा की व्यथा सुनकर उन्होंने कहा कि हे राजन, तुम्हारे यहां पुत्र उत्पन्न हो सकता है, अगर तुम पुत्रेष्टि यज्ञ सम्पन्न कराओ। राजा दशरथ ने कहा - हे गुरुदेव, हमें आपकी हर आज्ञा शिरोधार्य है, इसलिए आप अतिशीघ्र ही यह यज्ञ सम्पन्न करायें, जिससे मेरी मनोवांछित कामना की पूर्ति हो सके, तब महर्षि वसिष्ठ ने कहा-हे राजन, यह कोई सामान्य यज्ञ नहीं है। इसे हर कोई सम्पन्न नहीं करा सकता। इस तरह के यज्ञों को सम्पन्न कराने की पात्रता सभी ऋषियों में नहीं होती, यहां तक कि मैं भी इस दिव्य यज्ञ को सम्पन्न नहीं करा सकता हूं। आज के युग में इस पृथ्वी पर इसे सम्पन्न कराने की पात्रता माता आदिशक्ति की कृपा से केवल श्रृंगी ऋषि में ही है। जब वे इसे स्वयं सम्पन्न कराएंगे, तभी यह यज्ञ पूर्ण फलदायी होगा। इसलिए हे राजन, आपको स्वयं श्रृंगी ऋषि के पास जाकर निवेदन करना होगा। वे बहुत ही दयालू हैं। आपके निवेदन को जरूर स्वीकार करेंगे। इस तरह राजा दशरथ के निवेदन पर श्रृंगी ऋषि के द्वारा यज्ञ सम्पन्न कराया गया और राजा दशरथ की मनोकामना पूर्ण हुई तथा उन्हें भगवान् श्रीराम जैसे पुत्र की प्राप्ति हुई। इससे स्पष्ट होता है कि यज्ञों में असंभव को भी संभव करने की क्षमता होती है।
            राजा दशरथ ने पुत्र की प्राप्ति हेतु जिस पुत्रेष्टि यज्ञ को सम्पन्न कराया था उस यज्ञ को श्रृंगी ऋषि ने स्वयं यज्ञ वेदी के समक्ष बैठकर पूर्ण साधनात्मक विधि से (जिसमें कर्त्ता, क्रिया, कर्म पूर्ण होते है) सम्पन्न किया था उसी तरह से वह अवतार जिसे आज यज्ञ में पूर्ण प्रवीण कहा जा रहा है, निश्चित ही वह भी अपने इष्ट माता भगवती द्वारा निर्देशित विशिष्ट शक्तियज्ञ सम्पन्न करा रहे होंगे। उन यज्ञों को सम्पन्न कराने की पात्रता इस युग में इस पृथ्वी पर अन्य किसी दूसरे साधक, ऋषि, मुनि, योगी, धर्माचार्य या पीठाधीश्वर के पास नहीं होगी और उस विशिष्ट यज्ञ से निश्चित ही समाज का हर वर्ग लाभान्वित हो रहा होगा। समाज एक ऐसी आध्यात्मिक दिशा की ओर धीरे-धीरे मुड़ रहा होगा, जहाँ सत्यधर्म अपनी चरम सीमा पर होगा। ऐसी स्थिति कहां है ? अगर हम इस सत्य को खोज सके, तो उस चेतना को पहचानने में हमें कोई परेशानी नहीं होगी।
            भविष्यवाणी क्रमांक 20 तथा 20 में डॉ. जूलबर्न ने यूरोपीय जातियों का भारत की ओर झुकाव होने तथा उनके यहां हिन्दू देवी-देवताओं के मन्दिर तथा स्वेत जातियों के घरों में हिन्दू देवी-देवताओं के चित्र लगने की बात कही है। चीन के अणुबम बनाने का उल्लेख किया है तथा चीन से भारत द्वारा अपनी जमीन छुडानें की बात तथा तिब्बत के मुक्त होकर भारत में मिलने तथा हिमालय से कुछ पुस्तकें स्वर्ण मुद्रायें भारत को मिलने की बात तथा भारत की शक्ति व्यापक होने तथा भारत में ही 1962 से पहले सर्व सामर्थ्यवान् अवतार के जन्म लेने की बात कही है। इस प्रकार, 2018 तक उस अवतार की उम्र लगभग 58 वर्ष के आसपास होनी चाहिये। इसके साथ ही उस अवतार द्वारा एक विश्वव्यापी धार्मिक संस्था के गठन तथा उसके द्वारा आत्मा और परमात्मा के नये-नये रहस्यों को उजागर करने की बात कही गई है मेरा मानना है कि उसके द्वारा जिस धार्मिक संगठन का गठन किया जायेगा, उसका नाम उनके इष्ट माता भगवती के नाम से होना चाहिए। जब वह समाज के सामने प्रगट होगा तो उसको मानने वालों की संख्या बहुत ज्यादा होगी, उसके एक इशारे पर आध्यात्मिक परिवर्तन बड़ी तेजी के साथ फैलेगा, अर्थात् युगपरिवर्तन का चक्र बड़ी तेजी से चलेगा। साथ ही 2050 तक उस अवतार द्वारा बनाये गये कानून पूरी दुनिया में लागू हो जाएंगे। विश्वयुद्ध को उसने नकारा है, परन्तु वर्ग संघर्ष बढ़ने की बात कही है।
            भविष्यवाणी क्रमांक 21 22 में महान् भविष्यवक्ता नास्त्रेदमस ने उस अवतार के बारे में लिखा है कि उसका जन्म तीन ओर सागरों से घिरे देश में होगा, जो बृहस्पतिवार को अपना उपासना दिवस घोषित करेगा और वह गैर ईसाई होगा। पाठकगण जरा ध्यान दें सम्पूर्ण विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है, जिसके दोनों छोर पर दो सागर तथा चरणों में एक महासागर है। साथ ही आगे गौर करें कि ईसाइयों का पूजा दिवस रविवार, इस्लाम का पवित्र दिवस शुक्रवार तथा यहूदियों का प्रार्थना दिवस शनिवार है। विश्व में एक हिन्दू जाति ही ऐसी है, जो बृहस्पतिवार (गुरुवार) को सर्वाधिक शुभ दिवस मानती है, इससे स्पष्ठ हो जाता है कि नास्त्रेदमस ने भारत में ही उस अवतार के जन्म के विषय में कहा है।
      आगे नास्त्रेदमस ने सेन्चुरी -27 में कहा है कि उसका जन्म पांच नादियों के प्रान्त में होगा। अब हमें गौर करना है कि भारत में ऐसा कौन सा प्रान्त है जिसमें वेदों में वर्णित पांच नदियां बहती हो। पाठकगण ध्यान दें हमनें वेदों में वर्णित नदियों का जिक्र इसलिए किया है कि जब यहां पर ईश्वर (अवतार) के जन्म की बात हैं तो नदियां भी वेदों में वर्णित होनी चाहिए जिन्हें भारतीय समाज श्रद्धा की दृष्टि से देखता हो। अस्तु भारत वर्ष का उत्तर प्रदेश प्रान्त ही ऐसा है, जहां वेदों में वर्णित पूजित पांच नदियां- गंगा, यमुना, सरस्वती, गोमती, घाघरा प्रवाहित हैं अन्य ऐसा कोई प्रान्त नही है जहां इस तरह एक साथ पांच धार्मिक आस्था वाली नदियों की उपस्थिति हो, साथ ही गंगा, यमुना, सरस्वती जैसी धार्मिक दृष्टि से उच्च स्थान प्राप्त तीन नदियों का संगम भी केवल उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले में है। अतः इससे निश्चित हो जाता है कि उस ईश्वर का जन्म उत्तर प्रदेश में ही होगा। नास्त्रेदमस ने एक और बात लिखी है कि उसके नाम मेंबरनयाशरणशब्द जुड़ा होगा संभवतः ये दोनों ही शब्द उस अवतार के नाम में जुड़े होने चाहिए, जैसे जन्म के बाद गृहस्थ के नाम में ‘‘‘‘ या ‘‘बरन‘‘ शब्द जुड़ा होना चाहिये और एक निश्चित उम्र के बाद वह अपना मार्ग बदलेगा अर्थात् आगे अपनी इष्ट माता भगवती की साधना, आराधना करते हुए सन्यास मार्ग अपनायेगा तब उसका नाम ‘‘‘‘ अक्षर से शुरू होना चाहिए या नाम में ‘‘‘‘ या ‘‘शरन‘‘ अक्षर का समावेश होना चाहिए। इससे स्पष्ट है कि वह पहले गृहस्थ का पालन करेगा और उसके बाद परिवार को साथ रखकर पूर्णतया सन्यास मार्ग पर चलते हुए समाज का मार्गदर्शन करेगा। आगे नास्त्रेदमस और स्पष्ठ करते हुये लिखते हैं कि उस अवतार का जन्म 1960 के आसपास होना चाहिये। पाठकगण जरा ध्यान दें डा. जूलबर्न ने भी 1962 के पहले अवतार के जन्म लेने के विषय में कहा है। इस तरह सन् 2018 तक उनकी उम्र 58 वर्ष के आसपास होनी चाहिये। आगे नास्त्रेदमस ने लिखा है कि वह अवतार एक ग्रामीण किसान ब्राह्मण परिवार में जन्म लेगा। इससे स्पष्ट है कि उस चेतना का जन्म उत्तर प्रदेश के एक गांव में कृषक ब्राह्मण परिवार जिसकी आजीविका कृषि से होगी, भिक्षा या कथावाचन से नहीं। आगे नास्त्रेदमस ने सेन्चुरी -75 में लिखा है कि ‘‘भलों पर सवार होकर वह सही का साथ देगा। वह हमेशा चौकोर पत्थर पर बैठा रहेगा, दक्षिण की ओर बायें हाथ पर एक अजीब छड़ी लिए, मुंह बंद होगा। भलों पर सवार अर्थात् आध्यात्मिक चेतना से पूर्ण लोगों का संगठन बनाकर वह सच का साथ देगा, अर्थात् असत्य, अधर्म को नष्ट करके सत्यधर्म की स्थापना करेगा। 
            इससे पहले अगर प्रो0 हरार के भविष्य कथन को देखा जाय तो उस चेतना की यज्ञ कार्य में विशेष रुचि होगी। इसी आधार पर वेदो में वर्णित यज्ञों को देखें तो किसी विशेष यज्ञ की पात्रता एक निश्चित ऋषि के पास ही होती थी। इससे यह स्पष्ट होता है कि वह ऋषियों की परम्परा की ही एक कडी है, जो ऋषितुल्य जीवन गुजारते हुए यज्ञ कार्य सम्पन्न कर रहे होंगे और वह अपने साधनात्मक यज्ञ कार्य चौकोर आसन में बैठकर ही सम्पन्न करते होंगे, क्योंकि यज्ञवेदी में आहुति के समय बैठने के लिए चौकोर चौकी जो लकड़ी या धातु की होती है उसमे बैठकर यज्ञ कार्य सम्नन्न करते होंगे। इसी भविष्यवक्ता ने यह भी स्पष्ट किया है कि वह अवतार गुरुवार को अपना प्रमुख दिन घोषित करेगा इससे यह स्पष्ट होता है कि अगर वह ऋषि रूप में होंगे तो निश्चित ही वह गुरु-शिष्य परम्परा का निर्वहन करेंगे। इसी वजह से वह अवतार समाज को गुरुवार के दिन को महत्त्वपूर्ण दिन बताते होंगे, जैसे गुरुवार व्रत या फिर कोई कार्य का प्रारंभ गुरुवार से करें या रविवार की जगह गुरुवार ही छुट्टी का दिन घोषित किया जाय, आदि।
        भविष्यवाणी क्र.-23 में प्रो0 कीरो एक नयी बात ही स्पष्ट कर रहा है कि भारत वर्ष का सूर्य बलवान् है इसलिए भारत की प्रगति को दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती है। इसी भारत में ही सर्वशक्तिमान अवतार के जन्म कि बात लिखते है। उनके अनुसार उस चेतना के पास इतनी आध्यात्मिक शक्ति होगी, जो दुनिया की समस्त भौतिक शक्ति से ज्यादा होगी। उसके कार्य देश को जगाकर रख देंगे। बृहस्पति का योग भी होने से जनक्रान्ति की संभावना बढ़ती है। इस तथ्य को ध्यान देने की बात है कि जिस तरह भारत का सूर्य बलवान् होने के कारण भारत के विकास को दुनिया की कोई शक्ति रोक नहीं सकती तो निश्चित ही वहां पर जन्म लेने वाले अवतार का भी सूर्य बलवान होना चाहिए, अर्थात् उस चेतना के हाथों में सूर्ययोग पूर्ण विकसित स्थिति में होना चाहिए। यह संभावना ठोस आधार पर ही इस संस्करण में लिखी गई है एवं बृहस्पति के योग होने की बात तो नास्त्रेदमस ने भी अपनी भविष्यवाणी में लिखी है कि वह गुरुवार को महत्त्वपूर्ण दिन घोषित करेगा तथा एक नवीन ज्ञान से समाज को परिचित करायेगा। जो पूरे विश्व में फैलेगा।
      भविष्यवाणी क्र.-24 में कल्कि अवतार की पहचान के लिए उत्तराखण्ड के योगियों का मत है कि उस चेतना या अवतार के मस्तक पर दोनों भौहों के मध्य अंग्रेजी अक्षर ‘‘Vके आकार का चन्द्र विभूषित होगा। लेखक की सोच के आधार पर अगर इस ‘‘Vको उलट दिया जाय, तो यह “A” आकार के तिलक का रूप ले लेता है। साथ ही उस अवतार की इष्ट माता भगवती होने के कारण लाल रंग का “A” आकार का  तिलक होना चाहिए, क्योंकि शक्ति उपासना में मस्तक पर लाल तिलक का अति महत्त्व है। शायद ऐसे ही चन्द्र की बात उत्तराखण्ड के योगियांे के द्वारा कही गयी है। साथ ही दो रेखाओं युक्त अर्द्धचन्द्र गले में भी होगा। वह विशुद्ध भारतीय वेशभूषा में ही होगा। विशुद्ध भारतीय वेशभूषा दो तरह की होती है-- एक तो धोती-कुर्ता और दूसरा भगवा वस्त्र, जो एक संन्यासी के शरीर पर सुसज्जित रहता है। उस अवतार का स्वास्थ्य बालकों जैसा, रूप अश्विनी कुमारों जैसा, पराक्रम साहस योद्धाओं जैसा तथा वेद-शास्त्रों का प्रकाण्ड पंडित एवं योग की शिक्षा पिता द्वारा मिलने का उल्लेख है। साथ ही 32 अक्षरों का उसके जीवन में विशेष महत्त्व होगा। हमारा मानना है कि अगर उस अवतार की इष्ट माता भगवती हैं, तो दुर्गा सप्तशती में माता के 32 नाम माला (दुर्गा द्वात्रिशन्नाममाला) का विशेष महत्त्व है, जिसके माध्यम से साधक असंभव से असंभव कार्य को संभव कर सकता है इसलिए उन अवतार के जीवन में 32 अक्षरों वाली दुर्गा नाम माला का अधिक महत्त्व होना चाहिए।
        भविष्यवाणी क्र.-25 में महात्मा मार्कण्डेय ने कलियुग के तमाम लक्षणों को स्पष्ट करने के बाद कल्कि अवतार की बात की है। अवतार के संबंध में लेखक अपने बुद्धि विवेक के आधार पर उपरोक्त कथन का जो निष्कर्ष निकाला है वह इस तरह से है। उन्होंने लिखा है कि कल्कि भगवान् संभल नामक ग्राम में ब्राह्मण परिवार में जन्म लेगा। यहाँ पर पाठक ध्यान दें कि कोई भी भविष्यवाणी बहुत पहले कूट शब्दों में की जाती थी। जैसे नास्त्रेदामस की भविष्यवाणियों में कूटभाषा का प्रयोग किया गया है।
      सर्वप्रथम ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि ‘‘संभल‘‘ ग्राम नहीं तहसील है जो उत्तरप्रदेश के मुरादाबाद जिले में आती है। वहां की सारी जानकारी लेने पर ‘‘कल्कि अवतार‘‘ के जन्म की कोई भी जानकारी प्राप्त नहीं हुई है। कुछ लेखक संभल को चंबल नदी के तटवर्ती ग्राम से सम्बन्धित बताते हैं जबकि ऐसा नहीं है यहाँ पर लेखक अपने अनुभव के आधार पर एक बात लिख रहा है कि ‘‘संभल‘‘ में तीन अक्षर- ‘‘सं, , ‘‘  हैं। हो सकता है ऋषि मार्कण्डेय ने कूट भाषा में गांव का नाम लिखा हो और उस आधार पर इन तीनों अक्षरों में से किसी एक अक्षर से उस अवतार के जन्म के गांव का नाम आता हो।
            भविष्यवाणी क्र.-26 में महात्मा तिश्वरंजन ब्रह्मचारी लिखते हैं कि यद्यपि यह आध्यात्मिक क्रान्ति मध्य भारत से होगी, तदापि इसका प्रभाव पूरे भारत में पडे़गा। इसका अर्थ यह है कि अगर अवतार का जन्म उत्तर प्रदेश में होगा, तो मध्यप्रदेश के ही किसी जिले में उसका केन्द्रीय कार्यालय होगा, जहाँ से उसका कार्य चल रहा होगा। और, उसे समस्त वर्गों के लोगों का समर्थन मिल रहा होगा। अब चेतना की खोज और भी आसान हो जाती है। हमें यह पता करना है कि मध्यप्रदेश का ऐसा कौन सा जिला है, जहाँ इस समय कल्कि भगवान् का कार्यक्षेत्र बना हुआ है।

2 comments:

  1. प्रयास करने पर प्रभु अवश्य मिलेंगे..परन्तु प्रयासों में हृदय की वाणी भी सम्मिलित होनी चाहिए...अगर हरि से मिलने की दिल में तमन्ना..करो शुद्ध अंतःकरण धीरे धीरे...🙏😊

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